पौराणिक मान्यता है कि महाभारत के बाद पांडवों को दर्शन देने के लिए भगवान शिव ने बैल का रूप धारण किया था। यही रूप केदारनाथ में पूजित होता है।
यहां भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाया था। बर्फ से बनने वाला प्राकृतिक शिवलिंग इस गुफा को खास बनाता है।
समुद्रतल से 3,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है, जहां शिवजी की भुजाओं की पूजा की जाती है।
यहां भगवान शिव ने शिकारी का रूप धारण कर अर्जुन को दर्शन दिए थे। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।
तिरुवन्नामलई में स्थित यह पवित्र पर्वत वह स्थान है जहां शिवजी अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे — यही कारण है कि यहां कार्तिक दीपम पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
कुल्लू की पार्वती घाटी में स्थित यह क्षेत्र वह स्थान है जहां शिव और पार्वती ने वर्षों तक तपस्या और साधना की। खीरगंगा में आज भी गर्म जलकुंड इस कथा की याद दिलाते हैं।
त्रिकूट पर्वत को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है। यह स्थल धार्मिक ऊर्जा और प्रकृति की सुंदरता का संगम है।
गंगोत्री क्षेत्र में स्थित यह पर्वत चोटी शिवलिंग के आकार की है, और इसे शिवजी का साक्षात प्रतीक माना जाता है। पर्वतारोहियों के बीच यह लोकप्रिय स्थल है।
जूनागढ़ का यह पवित्र पर्वत शिव की उपस्थिति का जीवंत प्रतीक है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर स्वयं शिव यहां वास करते हैं।
यहां भगवान शिव ने वर्षों तक तपस्या की थी। माना जाता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयंभू रूप में प्रकट हुआ था।