जहां धरती खत्म होती है, वहीं से शुरू होती है भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका। मान्यता है कि उन्होंने खुद इसे बसाया था। कहते हैं, आज भी समुद्र की लहरों के पार कृष्ण लीला चल रही है।
कहते हैं शिव को काशी इतनी प्रिय है, कि उन्होंने इसे अपने त्रिशूल की नोंक पर बसाया। रात के सन्नाटे में जब शहर सो जाता है, शिव स्वयं गलियों में विचरण करते हैं।
देवताओं द्वारा रची नगरी, जहां श्रीराम का जन्म हुआ। यहां की हवाओं में हनुमान जी की भक्ति और राम नाम की गूंज आज भी महसूस की जा सकती है।
कर्नाटक का हम्पी, सिर्फ विरासत नहीं, श्रद्धा का केंद्र है। यहां स्थित अंजनाद्रि पर्वत को हनुमान जी की जन्मभूमि माना जाता है।
चार धामों में से एक, पुरी वो जगह है जहां भगवान जगन्नाथ दोपहर का विश्राम करते हैं। यहां की रथयात्रा केवल त्योहार नहीं, ईश्वर के आगमन का उत्सव है।
यहां का हर कण महाकाल की ऊर्जा से भरा है। हर 12 साल में महाकुंभ, और हर दिन बाबा का रूद्र रूप – उज्जैन केवल शहर नहीं, जागता हुआ शिव है।
यहां हर मोड़ पर राधा-कृष्ण की प्रेमगाथा बसी है। निधिवन में आज भी रात के समय रासलीला होती है, और कोई देख नहीं सकता।
तमिलनाडु का ये चमत्कारी मंदिर वह स्थान है, जहां शिव के जटाओं से अमृत टपका था। यहां आज भी देवता अमृतपान करने आते हैं।